आइये जानते है क्या होता है ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) और क्या होती है इसकी हमारे कंप्यूटर सिस्टम में भूमिका?
फ्रेंड्स हम में से जो भी लोग कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी से सम्बन्ध रखते है उन्हें अच्छी तरह पता होगा की हमारा कंप्यूटर बनता तो है इलेक्ट्रॉनिक्स पार्ट्स से मिलकर जिसे हार्डवेयर कहा जाता है, पर अपना वास्तविक कार्य अर्थात Computational Work करता है सॉफ्टवेयर की मदद से। ऐसे में कभी ना कभी Android, Windows, Linux, MacOS जैसे टर्म्स के बारे में सुनने को मिला होगा, पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये सभी है क्या, तो मैं संक्षेप में बताते चलूँ की ये सभी Operating System है जो एक सॉफ्टवेयर ही होता है परन्तु क्या आपको पता है की ऑपरेटिंग सिस्टम होता क्या है, ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते है, हमारे कंप्यूटर में इसका क्या काम होता है, अगर ऐसे ही सवालों के बारे में जानने के लिए यहाँ तक आयें है तो आप सही जगह है क्योंकि आज हमलोग इस आर्टिकल में ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में ही विश्लेषण करने जा रहे है इसलिए आपसे आग्रह है की पूरी आर्टिकल को ध्यानपूर्वक पढ़ें।हमलोग आगे बढ़ने से पहले संछेप में जान लेते है की आखिर सॉफ्टवेयर क्या होता है और कैसे काम करता है?
तो मैं बताते चलूँ की सॉफ्टवेयर हमारे कंप्यूटर सिस्टम का एक ऐसा पार्ट होता है जिसे हम छू कर अनुभव नहीं कर सकते क्योंकि यह कोई फिजिकल पार्ट नहीं होता है बल्कि सॉफ्टवेयर को केवल हम देख सकते है और उसपर कार्य कर सकते है।
वास्तव में सॉफ्टवेयर की परिभाषा की बात करें तो हम इस प्रकार से कह सकते है की “सॉफ्टवेयर कंप्यूटर की भाषा अर्थात प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में लिखा गया इंस्ट्रक्शन और प्रोगामों का समूह होता है जो कंप्यूटर के हार्डवेयर से कम्यूनिकेट करके उसे कोई भी कार्य करने में सक्षम बनाता है” बिना सॉफ्टवेयर के कंप्यूटर केवल एक मृत मशीन के समान है क्योंकि सॉफ्टवेयर ही कंप्यूटर के हार्डवेयर में जान डालने का काम करता है और उसे कार्य करने लायक बनाता है।
जैसा की हम सभी को पता है की कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है और कंप्यूटर स्वतः ही कुछ भी नहीं कर सकता बल्कि इससे कोई भी टास्क परफॉर्म करवाने के लिए इसे हमें इंस्ट्रक्शन देने होते है जो हम सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के माध्यम से देते है। साथ ही हमें पता होना चाहिए की कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन हमारी भाषा को डायरेक्टली नहीं समझ सकता अर्थात कोई भी इंस्ट्रक्शन हम अपनी भाषा में लिखकर या बोलकर देंगे तो इलेक्ट्रॉनिक मशीन नहीं समझ सकता, यह केवल इलेक्ट्रिक सिग्नल को ही समझ सकता है, इसलिए कंप्यूटर के क्षेत्र में एक ऐसी भाषा का विकास किया गया है जो इलेक्ट्रिक सिग्नल के माध्यम से ही कंप्यूटर को कोई बात समझाने का काम करता है जिसे मशीनी भाषा (Machine Language) कहा जाता है जो Binary Digit 0 और 1 (Bit) के कॉम्बिनेशन (011100010001) से बना होता है जिसे कंप्यूटर आसानी से समझ सकता है इसलिए इसे Binary Language भी कहा जाता है। बाइनरी डिजिट के 0 का मतलब होता है Signal Off (Low) और 1 का मतलब होता है Signal On (High), यानि मशीन भाषा में कंप्यूटर को दी जानेवाली इंस्ट्रक्शन को Signal के ON-OFF-ON-OFF होने के Behave पर कंप्यूटर समझता है।
कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को दो श्रेणी में बांटा गया है, पहला High Level Language और दूसरा Low Level Language.
Machine Language कंप्यूटर की Low Level Language की श्रेणी में आते है और Low Level Language में कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम लिखना बहुत ही कठिन होता है इसलिए प्रोग्रामिंग को आसान बनाने के लिए कई सारे High Level Language जैसे- C, C++, Java, Python, etc। का भी विकास किया गया है जिसमे प्रोग्राम डायरेक्टली मशीन लैंग्वेज में नहीं लिखना पड़ता है बल्कि ऐसे प्रोग्रामों में इंस्ट्रक्शन Human Readable Form में लिखी जाती है जिस कारण इन सभी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में प्रोग्रामर के लिए इंस्ट्रक्शन को लिखना, पढ़ना तथा समझना आसान होता है। हालाँकि इन सभी भाषाओं में भी लिखी गयी प्रोग्रामों के इंस्ट्रक्शन को कंप्यूटर डायरेक्टली नहीं समझ सकता है क्योंकि हमें पता है की कंप्यूटर केवल मशीन लैंग्वेज को ही समझ सकता है, इसलिए इसके इंस्ट्रक्शन को Translator Program जैसे- Compiler, Interpreter की मदद से मशीन लैंग्वेज में कन्वर्ट करवाना पड़ता है तभी प्रोग्राम एक्सीक्यूट हो पाती है। हमारे कंप्यूटर सिस्टम में इसी तरह से Software Execution का कांसेप्ट काम करता है।
हमारे कंप्यूटर सिस्टम में उपयोग होनेवाले सॉफ्टवेयर को उसके कार्य के अनुसार दो भागों में विभाजित किया गया है, जिनमे से पहला है System Software और दूसरा है Application Software। सिस्टम सॉफ्टवेयर के अंतर्गत वे सॉफ्टवेयर आते है जो System को Manage, Optimize तथा Maintenance के काम में आते है जैसे- Operating System, Utility Software, Firmware etc., जबकि एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर वे सॉफ्टवेयर होते है जो यूजर के किसी खास काम को पूरा करने के उदेश्य से बनाये गए होते है जैसे- MS Office, Photoshop, Tally etc.
वास्तव में सॉफ्टवेयर की परिभाषा की बात करें तो हम इस प्रकार से कह सकते है की “सॉफ्टवेयर कंप्यूटर की भाषा अर्थात प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में लिखा गया इंस्ट्रक्शन और प्रोगामों का समूह होता है जो कंप्यूटर के हार्डवेयर से कम्यूनिकेट करके उसे कोई भी कार्य करने में सक्षम बनाता है” बिना सॉफ्टवेयर के कंप्यूटर केवल एक मृत मशीन के समान है क्योंकि सॉफ्टवेयर ही कंप्यूटर के हार्डवेयर में जान डालने का काम करता है और उसे कार्य करने लायक बनाता है।
जैसा की हम सभी को पता है की कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है और कंप्यूटर स्वतः ही कुछ भी नहीं कर सकता बल्कि इससे कोई भी टास्क परफॉर्म करवाने के लिए इसे हमें इंस्ट्रक्शन देने होते है जो हम सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के माध्यम से देते है। साथ ही हमें पता होना चाहिए की कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन हमारी भाषा को डायरेक्टली नहीं समझ सकता अर्थात कोई भी इंस्ट्रक्शन हम अपनी भाषा में लिखकर या बोलकर देंगे तो इलेक्ट्रॉनिक मशीन नहीं समझ सकता, यह केवल इलेक्ट्रिक सिग्नल को ही समझ सकता है, इसलिए कंप्यूटर के क्षेत्र में एक ऐसी भाषा का विकास किया गया है जो इलेक्ट्रिक सिग्नल के माध्यम से ही कंप्यूटर को कोई बात समझाने का काम करता है जिसे मशीनी भाषा (Machine Language) कहा जाता है जो Binary Digit 0 और 1 (Bit) के कॉम्बिनेशन (011100010001) से बना होता है जिसे कंप्यूटर आसानी से समझ सकता है इसलिए इसे Binary Language भी कहा जाता है। बाइनरी डिजिट के 0 का मतलब होता है Signal Off (Low) और 1 का मतलब होता है Signal On (High), यानि मशीन भाषा में कंप्यूटर को दी जानेवाली इंस्ट्रक्शन को Signal के ON-OFF-ON-OFF होने के Behave पर कंप्यूटर समझता है।
कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को दो श्रेणी में बांटा गया है, पहला High Level Language और दूसरा Low Level Language.
Machine Language कंप्यूटर की Low Level Language की श्रेणी में आते है और Low Level Language में कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम लिखना बहुत ही कठिन होता है इसलिए प्रोग्रामिंग को आसान बनाने के लिए कई सारे High Level Language जैसे- C, C++, Java, Python, etc। का भी विकास किया गया है जिसमे प्रोग्राम डायरेक्टली मशीन लैंग्वेज में नहीं लिखना पड़ता है बल्कि ऐसे प्रोग्रामों में इंस्ट्रक्शन Human Readable Form में लिखी जाती है जिस कारण इन सभी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में प्रोग्रामर के लिए इंस्ट्रक्शन को लिखना, पढ़ना तथा समझना आसान होता है। हालाँकि इन सभी भाषाओं में भी लिखी गयी प्रोग्रामों के इंस्ट्रक्शन को कंप्यूटर डायरेक्टली नहीं समझ सकता है क्योंकि हमें पता है की कंप्यूटर केवल मशीन लैंग्वेज को ही समझ सकता है, इसलिए इसके इंस्ट्रक्शन को Translator Program जैसे- Compiler, Interpreter की मदद से मशीन लैंग्वेज में कन्वर्ट करवाना पड़ता है तभी प्रोग्राम एक्सीक्यूट हो पाती है। हमारे कंप्यूटर सिस्टम में इसी तरह से Software Execution का कांसेप्ट काम करता है।
हमारे कंप्यूटर सिस्टम में उपयोग होनेवाले सॉफ्टवेयर को उसके कार्य के अनुसार दो भागों में विभाजित किया गया है, जिनमे से पहला है System Software और दूसरा है Application Software। सिस्टम सॉफ्टवेयर के अंतर्गत वे सॉफ्टवेयर आते है जो System को Manage, Optimize तथा Maintenance के काम में आते है जैसे- Operating System, Utility Software, Firmware etc., जबकि एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर वे सॉफ्टवेयर होते है जो यूजर के किसी खास काम को पूरा करने के उदेश्य से बनाये गए होते है जैसे- MS Office, Photoshop, Tally etc.
अब हमलोग यहाँ Brief में जान चुके है की सॉफ्टवेयर क्या होता है, कैसे काम करता है तथा कितने प्रकार के होते है और यहाँ हमलोग System Software के अंतर्गत आनेवाले Operating System Software के बारे में विस्तार से जानने वाले है, इसलिए आइये अब मेन टॉपिक पर चर्चा करते है....
ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? Operating System kya hai?
Operating System एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है जिसे संक्षेप में OS कहा जाता है। यह कंप्यूटर सिस्टम में Use किया जानेवाला एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जो यूजर और कंप्यूटर हार्डवेयर बीच इंटरफ़ेस बनाने का कार्य करता है यानि यूजर और कंप्यूटर के बीच तालमेल बनाने का कार्य करता है। यह यूजर के द्वारा दी जानेवाली इनपुट (कमांड) को कंप्यूटर के हार्डवेयर को समझने का कार्य करता है तथा कंप्यूटर से प्रोसेस होकर से आ रही परिणाम को यूजर को समझाने का काम करता है।ऑपरेटिंग सिस्टम हमारे कंप्यूटर सिस्टम का सबसे मुख्य सॉफ्टवेयर होता है, इसके बिना कंप्यूटर पर कार्य कर पाना मुश्किल है। ऑपरेटिंग सिस्टम ही कंप्यूटर को यूजर फ्रेंडली बनाने का कार्य करता है। कंप्यूटर में उपयोग किये जानेवाला ऑपरेटिंग सिस्टम है जैसे- Dos, Windows, Unix, Linux, MacOS, Ubuntu ये सभी ऑपरेटिंग सिस्टम के उदहारण है इसके आलावा Android भी एक प्रचलित ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसका उपयोग Smartphone में किया जाता है।
कंप्यूटर में Windows Operating System बहुत ही प्रचलित है जिसे Microsoft Corporation के द्वारा बनाया जाता है विंडोज एक Graphical User Interface (GUI) OS है जिसमे Text के साथ साथ Colorful Graphic भी दिखाया जाता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम के इंटरफ़ेस को और भी Attractive & Easy To Use बनता है विंडोज के आलावा और भी बहुत सारे OS Use किये जाते है जैसे- Linux, Unix, Mac, Ubuntu Etc.
ऑपरेटिंग सिस्टम कैसे काम करता है?
हमारे कंप्यूटर सिस्टम में ऑपरेटिंग सिस्टम ही एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जो बूटिंग प्रोसेस पूरा होने के पश्चात सबसे पहले हमारे सामने मॉनिटर स्क्रीन पर दिखाई देता है और एक यूजर फ्रेंडली प्लेटफार्म प्रस्तुत करता है जिसके बाद हम कोई कार्य प्रारंभ करते है।इसका वर्किंग कांसेप्ट कुछ इस प्रकार होता है की, जब आप कंप्यूटर चालू करते हैं तो सबसे पहले कंप्यूटर में बूटिंग प्रक्रिया होती है जिसमे सभी हार्डवेयर पार्ट्स तथा उसमे लगे सभी डिवाइस की टेस्टिंग होती है यदि सभी पास हो जाती है तो आगे Boot Drive में मोजूद ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर की प्रोग्राम मुख्य मेमोरी (RAM) में लोड होती है और सब कुछ सही होने के पश्चात आगे हमारे सामने डेस्कटॉप स्क्रीन दिखाई देती है जिसके बाद ऑपरेटिंग सिस्टम हमें हार्डवेयर का उपयोग करने की अनुमति देता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम लोड होने के पश्चात हम कंप्यूटर को जो भी कमांड देंगे उसके अनुकूल ऑपरेटिंग सिस्टम हमें रिस्पांस देगी तथा रिसोर्सेज मुहैया कराएगी जैसे- यदि हमें कोई विडियो को चलाना होगा तो हम जैसे ही विडियो फाइल पर क्लिक करेंगे वैसे ही हमारे सामने विडियो प्लेयर पर वह विडियो चलना चालू हो जायेगा। हालाँकि इसके कार्य केवल विडियो तक ही सिमित नहीं है बल्कि ऑपरेटिंग सिस्टम हमें कई तरह की फंक्शनलिटीज़ उपलब्ध कराती है जिसका उपयोग हम अपने कार्य के अनुकूल करते है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य?
- कंप्यूटर को स्टार्ट, रीस्टार्ट तथा बंद करना
- इनपुट आउटपुट मैनेजमेंट करना
- मेमोरी मैनेजमेंट करना
- प्रोसेसिंग मैनेजमेंट करना
- हार्डवेयर मैनेजमेंट करना
- फाइल मैनेजमेंट करना
- सिस्टम परफॉरमेंस को बेहतर बनाये रखना
- सिक्योरिटी मैनेजमेंट करना
- एरर रिपोर्टिंग करना तथा ट्रबलशूटिंग करना
- सॉफ्टवेयर मैनेजमेंट करना
- प्रिंटिंग मैनेजमेंट करना, इत्यादि।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार?
कार्य के अनुसार अलग-अलग प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को बनाया गया है जिसे कोई भी आर्गेनाइजेशन या कोई यूजर अपनी जरुरत के अनुसार उपयोग में लाते है जैसे:-Single User Single Tasking Operating System:-
जैसा की इस OS के नाम से हे पता चलता है की सिंगल यूजर सिंगल टास्क यानि यह ऑपरेटिंग सिस्टम सिंगल यूजर के लिए बेहतर कार्य करने के लिए बनाया गया है जिसपर एक समय में एक व्यक्ति एक साथ एक ही प्रोग्राम पर कार्य कर सकता है। इस प्रकार के OS का इस्तेमाल सुरुवाती दौर में यानि जब OS का विकाश हुआ था उस दोरान किया जाता था आजकल मल्टीटास्किंग OS ज्यादातर उपयोग में लाये जाते है।Single User Multitasking Operating System:-
इस OS के भी नाम से पता चलता है की यह ऑपरेटिंग सिस्टम सिंगल यूजर को कार्य करने के लिए बनाया गया है पर इसपर एक व्यक्ति एक समय में एक साथ कई प्रोग्राम को रन करवा सकता है तथा अलग अलग कार्यों को एक साथ कर सकता है। इसी प्रकार OS एक सामान्य कंप्यूटर में आज पाया जाता है। Windows and MacOS इस प्रकार के OS की श्रेणी में आते है।Multi User Multitasking Operating System:-
ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम पर कई यूजर एक साथ काम कर सकते है साथ ही अलग अलग सॉफ्टवेयर भी रन करावा सकते है। इस प्रकार के मल्टी यूजर OS को कंप्यूटर नेटवर्क में इस्तेमाल किये जाते है क्योंकि नेटवर्क में बहुत सारे यूजर एक साथ कार्य करते है जिसके लिए Multi User OS की जरुरत होती है। Unix and Windows NT इस प्रकार के OS के उदहारण है।Batch Processing Operating System:-
बैच प्रोसेसिंग OS का उपयोग वैसे स्थानों पर किया जाता है जशन कम समय में बड़ी मात्रा में डाटा प्रोसेस करने की जरुरत पड़ती हो, क्योंकि बैच प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम में डाटा बैच के रूप में प्रोसेस होती है अर्थात इसमें डाटा बंडल के रूप में execute होती है। इस प्रकार के OS में ऑटो प्रोसेसिंग की जाती है।Real Time Operating System:-
यह ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसे ऐसे जगह पर इस्तेमाल किया जाता है जहाँ एक निश्चित समय में काफी ज्यादा व् महत्वपूर्ण गणनाएं करना होता है यानि वैसे कार्य जहाँ टाइम एंड डाटा दोनों इम्पोर्टेन्ट हो ऐसे क्षेत्र में उपयोग किया जानेवाला कंप्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। जैसे- सेटेलाइट लांचिंग, मिसाइल लांचिंग जैसे कार्यों में डाटा तथा टाइम दोनों इम्पोर्टेन्ट होते है इसलिए ऐसे कार्यों में उपयोग होनेवाले कंप्यूटर या सर्वर में रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है।डिवाइस डिपेंडेंसी के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार:-
Stand Alone Operating System:-
यह ऑपरेटिंग सिस्टम वैसे OS होते है जो डिवाइस तथा कंपनी डिपेंडेंट नहीं होते है यह OS एक डिवाइस इंडिपेंडेंट OS होते है क्योंकि इस प्रकार के OS को किसी भी डिवाइस में स्थापित किया जा सकता है जो डेस्कटॉप, लैपटॉप इत्यादि कंप्यूटिंग डिवाइस पर काम करता है Microsoft Windows इसी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर है।Server Operating System: -
इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को नेटवर्क में सपोर्ट करने के लिए डिज़ाइन किये गए होते है ।सर्वर OS मुख्य रूप से सर्वर पर कार्य करता है जिस सर्वर से बहुत सरे क्लाइंट नेटवर्क में जुड़े हो सकते है तथा सभी क्लाइंट सारे रिसोर्सेस सर्वर से प्राप्त करते है। सर्वर OS को इस प्रकार से डिज़ाइन किया गया होता है की यह सभी सर्वर सिस्टम को सपोर्ट कर सके। कुछ सर्वर OS के उदहारण है जैसे- Windows Server 2008, Unix Server, Solaris, Netware Etc.Embedded Operating System:-
यह ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम होता है जिसे किसी खास डिवाइस के लिए बनाया गया होता है और यह OS डिवाइस मैन्युफैक्चरर कंपनी के द्वारा ही ROM में Load कर दिया जाता है जिसे हम अपनी इच्छानुसार बदल नहीं सकते है इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के उदहारण है Symbian, Windows Embedded CE, Embedded Linux जो कि मोबाइल फ़ोन, माइक्रोकंट्रोलर, राऊटर तथा रोबोट इत्यादि जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस में आते है।इन्हें भी देखें:→
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Conclusion:
फ्रेंड्स हमें उम्मीद है की इस आर्टिकल को पढने के बाद आपको ऑपरेटिंग सिस्टम क्या होता है, कैसे काम करता है, कितने प्रकार के होते है जैसे सवालों का जबाब मिल गया होगा, फिर भी किसी प्रकार की कोई कंफ्यूजन रह गयी हो तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते है। यह आर्टिकल आपको कैसी लगी इसकी फीडबैक जरुर दें ताकि आपके फीडबैक के आधार पर हम यह सुनिश्चित कर सकें की आपके सामने प्रस्तुत हो रही आर्टिकल की गुणवत्ता कैसी है और यदि किसी प्रकार की कोई कमी पाई जाती है तो हम उसमे इम्प्रूवमेंट लाने की पूरी कोशिश करेंगे। साथ ही अगर यदि यह आर्टिकल आपको पसंद आई हो तो अपने फ्रेंड सर्किल में शेयर करें। इसी प्रकार की टेक्नोलॉजी से सम्बंधित और भी आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए Comtechinhindi.IN से जुड़े रहे। धन्यवाद!